कुमाऊँ रेजीमेंट के इन 2 परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के नाम पर रखा गया अंडमान और निकोबार के द्वीपों के नाम !!

पराक्रम दिवस के अवसर पर सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अंडमान और निकोबार के 21 बड़े अनाम द्वीपों का नाम रखा गया।

इन द्वीपों का नाम परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के नाम पर रखा गया है। जिनमें कुमाऊं रेजीमेंट के दो जांबाज सैन्‍य अफसरों ने नाम भी शामिल हैं।

कुमाऊं रेजीमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा व मेजर शैतान सिंह के नाम पर रखा गया 2 द्वीपों का नाम।

मेजर सोमनाथ शर्मा आजाद भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता रहे हैं। खास बात यह है कि 22 फरवरी 1942 को मां भारती के इस वीर सपूत ने कुमाऊं रेजीमेंटल सेंटर (केआरसी) मुख्यालय रानीखेत से कमीशन प्राप्त किया था।

इनकी प्रारंभिक पढ़ाई नैनीताल से हुई। प्रिंस आफ वेल्स रायल मिलिट्री कालेज देहरादून से उच्च शिक्षा प्राप्त कर वह सेना में भर्ती हुए थे। 1942 में उन्हें केआरसी में कमीशन मिला। देश के लिए मर मिटने का जज्बा पाले मेजर सोमनाथ का हाथ चोटिल होने के बावजूद उन्होंने 1947 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में अदम्य साहस का प्रदर्शन किया।

उन्‍होंने तीन नवंबर 1947 को दुश्मन सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर किया। उन्‍होंने जम्मू कश्मीर के बडगाम में महज 24 साल की उम्र में मातृभूमि की आन, बान व शान की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया। रानीखेत का ऐतिहासिक सोमनाथ मैदान कुमाऊं रेजीमेंट के इसी जांबाज फौजी अफसर के नाम पर है। अब देश के एक द्वीप का नाम मेजर सोमनाथ शर्मा के नाम पर रखा गया है।

इसके साथ ही कुमाऊं रेजीमेंट के एक और परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की याद में भी द्वीप का नाम रखा गया है। 13 कुमाऊं के इस जांबाज ने 1962 की जंग में अदम्य साहस का परिचय देते हुए रेजांगला में मोर्चा संभाला था। अपनी टुकड़ी के साथ खुद के दम पर 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था।

कहा जाता है कि मशीनगन को रस्सी से पैरों में बांधकर इस वीर सपूत ने दुश्मन सेना से लोहा लिया। जोधरपुर (राजस्थान) में एक दिसंबर 1924 को जन्मे शैतान सिंह के पिता हेम सिंह भाटी भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे। पिता से विरासत में मिली बहादुरी और देशप्रेम का जज्बा ही था कि जोधरपुर स्टेट फोर्स के इस जांबाज ने एक अगस्त 1949 में कुमाऊं रेजीमेंट में तैनाती ली।

1962 में शैतान सिंह पदोन्नत होकर मेजर नियुक्त किए गए। कुछ ही दिनों बाद 18 नवंबर को भारत और चीन में जंग छिड़ गई थी। लद्दाख की चुशुल घाटी में 13 कुमाऊं रेजीमेंट के लगभग 120 जवनों की टुकड़ी की अगुवाई करते हुए मेजर शैतान सिंह ने चीनी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया। आखिर में अपना सर्वोच्च बलिदान देकर हमेशा के लिए अमर हो गए।