उत्तराखंड में सरकारी डॉक्टरों को मिलने वाला नॉन प्रैक्टिस एलाउंस (एनपीए) पूरी तरह बंद नहीं होगा। सरकार डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस की छूट के साथ ही एनपीए का भी विकल्प देगी। डॉक्टर इनमें से किसी एक विकल्प को चुन सकते हैं।
दरअसल राज्य सरकार कई डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस को देखते हुए उन्हें खाली समय में निजी प्रैक्टिस की छूट देने पर विचार कर रही है। इस संदर्भ में शासन स्तर पर कवायद चल रही है। इस प्रस्ताव की भनक लगने के बाद से प्रांतीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा संघ एनपीए बंद करने का विरोध कर रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि एनपीए बंद होने की सूरत में आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा।
लेकिन शासन के अधिकारियों ने बताया कि सभी डॉक्टरों का एनपीए बंद नहीं किया जा रहा है। सरकार डॉक्टरों को एनपीए या फिर निजी प्रैक्टिस में से कोई एक विकल्प चुनने का मौका देगी। डॉक्टर जिस भी विकल्प को चुनेंगे उसी के अनुसार उन्हें एनपीए या फिर निजी प्रैक्टिस की छूट दी जाएगी। विदित है कि डॉक्टरों को मूल वेतन का 20 प्रतिशत एनपीए के रूप में मिलता है। लेकिन जिन डॉक्टरों की अच्छी प्रैक्टिस चलती है उनके लिए 20 प्रतिशत एनपीए काफी कम है। ऐसे में डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस की छूट का विकल्प भी दिया जा रहा है। सचिव स्वास्थ्य डॉ आर राजेश कुमार ने बताया कि सरकारी डॉक्टरों की एनपीए की सुविधा पूरी तरह बंद नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि सिर्फ निजी प्रैक्टिस की छूट चाहने वाले डॉक्टरों को ही एनपीए नहीं मिलेगा।
राज्य में यदि सरकारी डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस की छूट मिलती है तो इससे आम लोगों को खासा फायदा मिलेगा। दरअसल राज्य के सरकारी अस्पतालों में ओपीडी में भारी भीड़ होती है। इस वजह से डॉक्टर मरीजों को चाहकर भी पूरा समय नहीं दे पाते। जबकि निजी प्रैक्टिस में ऐसी स्थिति नहीं होगी और डॉक्टर मरीजों को पूरी तसल्ली से देख पाएंगे। इसके अलावा सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस की फीस भी आम तौर पर प्राइवेट डॉक्टरों से काफी कम होती है। ऐसे में सरकार के इस फैसले से आम मरीजों को राहत मिलने की उम्मीद है।
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