उत्तराखंड की सहकारी समितियों के चुनाव का नए सिरे से ऐलान हो गया है। पांच मार्च को अनन्तिम मतदाता सूची के साथ चुनाव प्रक्रिया शुरू होगी। 18 मार्च को प्रबंध कमेटी के सदस्यों का चुनाव होगा। 19 मार्च को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष समेत अन्य संस्थाओं को भेजे जाने वाले डेलीगेट चुने जाएंगे।
हाईकोर्ट के आदेश पर नई नियमावली के तहत चुनाव होंगे। 21 फरवरी को हाईकोर्ट के आदेश पर 24 फरवरी को मतदान होने के बाद चुनाव प्रक्रिया स्थगित की गई थी। हाईकोर्ट ने नई नियमावली से चुनाव कराने के आदेश दिए। इसके तहत जो नए सदस्य बनाए गए, उन्हें मतदान का अधिकार नहीं मिल पाएगा। सरकार ने नए बनाए गए सदस्यों को वन टाइम राहत देते हुए वोटिंग का अधिकार दिया था। इसके तहत चुनाव घोषित होने के 45 दिन पहले वोटर का अपनी समिति में तीन साल के भीतर लेन-देन करना अनिवार्य होता है। इस व्यवस्था को सरकार ने समाप्त कर दिया था। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
इस पर कोर्ट ने पुरानी व्यवस्था से ही चुनाव कराने के आदेश दिए। इसके तहत अब पांच मार्च को अनन्तिम और सात मार्च को अन्तिम वोटर लिस्ट जारी होगी। आठ मार्च को नामांकन, 11 मार्च को नाम वापसी और 18 मार्च को मतदान के साथ ही चुनाव परिणाम जारी होंगे। 19 मार्च को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष समेत शीर्ष संस्थाओं के लिए भेजे जाने वाले डेलीगेट चुने जाएंगे।
वंही चुनाव की नई तारिखों का ऐलान होने के बाद याचिकाकर्ता मांगेराम ने सहकारिता चुनाव प्राधिकरण कार्यालय पंहुचकर आरोप लगाया है कि हाइकोर्ट के निर्णय को तोड़ मरोड़ कर लागू कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उन्ही की याचिका में कोर्ट ने पुरानी व्यवस्ता में चुनाव करवाने के लिए कहा है लेकिन सहकारिता चुनाव प्राधिकरण सिर्फ अपनी मनमर्जी के अनुसार चुनाव करवा रहा है।
इसके अतिरिक्त राज्य कॉपरेटिव बैंक के पूर्व चेयरमैन दान सिंह रावत ने भी सहकारिता निर्वाचन आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि पुरानी 2018 की नियमावली के अनुसार सहकारिता चुनाव में महिला आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था, कोर्ट के आदेश पर 2018 की नियमावली के अनुसार चुनाव को करवाए जा रहे हैं लेकिन 2018 के कई प्रवधान छोड़े भी जा रहे हैं, जोकि गलत है, अगर उनकी मांगे प्राधिकरण नहीं सुनेगा तो वह पुनः कोर्ट की शरण लेंगें।

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