उत्तराखंड पुलिस की लचर कार्यशैली का आलम यह है कि दो दशक बाद भी अपने है लापता ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी का पता नहीं लगा सकी। रहस्यमयी परिस्थितियों में लापता पुलिस अधिकारी धूम सिंह तोमर अपने सेवाकाल में ईमानदारी के चलते न सिर्फ कुछ विभागीय अधिकारियों के आंखें की किरकिरी रहे, बल्कि साजिशों का शिकार भी हुए। अब पुलिस महकमे का हाल यूं है कि महकमे के नए अधिकारी व कर्मचारी इस ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी का नाम तक नहीं जानते।
उत्तराखण्ड पुलिस के ईमानदार अधिकारियों में शुमार धूम सिंह तोमर की रहस्यमयी गुमशुदगी के दो दशक बाद आज भी एक पहेली बनी हुई है। तोमर वर्ष 2003 में हरिद्वार के तत्कालीन एस.पी सिटी थे। 23 सितंबर 2003 को वे रहस्यमय परिस्थितियों में लापता हुए। अब तक उनका कोई पता नहीं चल पाया है। अब तो वे आमजन ही नहीं, बल्कि पुलिस महकमे के स्मृति पटल से भी ओझल हो चुके हैं।
गौरतलब है कि 23 सितंबर 2003 की शाम उत्तराखण्ड पुलिस के माथे पर ऐसा बदनुमा दाग लगा जो शायद ही साफ हो सकेगा। यह दिन मित्र पुलिस के इतिहास में किसी कंलक से कम नहीं माना जा सकता। बताया जाता है कि हरिद्वार में बतौर एसपी सिटी तैनात धूम सिंह 23 सितंबर 2003 की शाम 7:30 बजे डाम कोठी के समीप वॉक करने के लिए नहर पटरी पहुंचे। इसी बीच वह अचानक गायब हो गए। देर तक जब धूम सिंह घर नहीं लौटे तो उनकी पत्नी द्वारा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया गया। देखते ही देखते बड़ी संख्या में पुलिस बल एवं अधिकारी उनकी तलाश में जुट गए। उसी दौरान डाम कोठी के आस-पास छानबीन के दौरान धूम सिंह तोमर के जूते नहर की सीढ़ियों में पाए गए एवं उनका चश्मा, मौजे झांडियों से बरामद किए गए। उस समय अधिकारियों द्वारा धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी को लेकर उनके अपहरण अथवा नहर में डूबकर आत्महत्या जैसी आशकांए जाहिर की गई।
दोनों ही आशंकाओं को केंद्र में रखकर खोजबीन शुरू हुई। पुलिस एवं आर्मी के गोताखोर के अलावा आम जनता के बीच से कुशल गोताखोरों ने डाम कोठी से 30 किमी दूर तक समूची गंगनहर को खंगाला गया। परंतु तोमर का कहीं पता नहीं चला। उस समय लगाई जा रही सारी कयासबाजी निरर्थक साबित हुई।
धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी को लेकर दर्ज कराई गई शिकायत पर प्रारंभिक जांच कोतवाली हरिद्वार में तत्कालीन एसएसआई टीके शर्मा को सौंपी गई। हफ्तेभर बाद ही इंस्पेक्टर गिरीश चंद्र को जांच अधिकारी बनाया गया। परंतु धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी एक पहेली ही बनी रही। तोमर की गुमशुदगी के बाद से उनकी पत्नी ने अपने पति के गनर, घटना के वक्त टेलीफोन ड्यूटी पर तैनात कॉन्स्टेबल व तोमर के पेशकार को केंद्र में रखते हुए सीबीआई जांच की मांग कर डाली थी व तत्कालीन एसएसपी अशोक कुमार (मौजूदा डी.जी.पी) से बार-बार अनुरोध किया गया था।
बताया जाता है कि इस संबंध में जांच कराने के बजाए तत्कालीन हरिद्वार पुलिस प्रशासन ने इन तर्कों को निराधार बताते हुए श्रीमती तोमर की मांग को खारिज कर दिया गया व तीनों पुलिसकर्मियों के विरुद्ध जांच करने की जरूरत भी नहीं समझी गई।
हां, इतना जरूर हुआ कि दबाव पड़ने पर धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी को अपहरण की धाराओं में तरमीम कर मुकदमा अपराध संख्या 991/03 धारा 364 IPC धूम सिंह तोमर के पुत्र की ओर से दर्ज कर लिया गया। मुकदमा दर्ज होने के बाद भी धूम सिंह तोमर का गुम होना एक पहेली ही बना रहा।
वंही उक्त घटनाक्रम के कुछ समय बाद ही धूम सिंह के परिवार से सरकारी आवास तक खाली करा लिया गया।
बता दें कि तोमर मूल रूप से देहरादून जनपद के अंतर्गत कालसी तहसील के सकरोल गांव के निवासी थे। बताया जाता है कि इस ईमानदार पुलिस अधिकारी से अक्सर विभाग के कुछ अधिकारी परेशान रहते थे व यहां तक की सौतेला व्यवहार तक करते थे।
कमल दास कुटिया मामले से भी जोड़े गए तार –
उस वक्त धर्मनगरी में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार जिस दौरान धूम सिंह तोमर गुम हुए उस दौरान वह हरिद्वार स्थित करोड़ों रुपये कीमत वाली बेशकीमती संपत्ति कमलदास कुटिया की जांच कर रहे थे। जिसमें कब्जे को लेकर हरिद्वार के एक मुख्य संत एवं पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी की भूमिका सामने आ रही थी। चूंकि धूम सिंह ईमानदार पुलिस अधिकारी थे जिसके चलते उक्त संपत्ति पर कब्जा करने वाले माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही तय मानी जा रही थी। जिसके चलते आज भी हरिद्वारवासी दबी जबान में धूम सिंह की रहस्यमयी गुमशुदगी को कमलदास की कुटिया प्रकरण से जोड़ने की बात करते हैं।
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