पंचायत चुनाव बना सरकार के लिए गले की फांस, अध्यादेश पत्रावली में विधायी विभाग की टिपणी के बाद राजभवन में असमंजस की स्तिथि !!

उत्तराखंड में 6 माह से लंबित पंचायत चुनाव दिन पर दिन राज्य सरकार के लिए गले की फांस बनता जा रहा है। 6 माह का प्रशासक काल खत्म होने के उपरांत भी अभी तक पंचायत चुनाव को लेकर अभी तक तस्वीर साफ नही हो पाई है।

जानकारी के लिए आपको बता दें कि पंचायती राज विभाग के एक्ट में सिर्फ एक ही बार 6 माह के लिए चुनाव को स्थगित करने का प्रावधान है। चुनाव 6 माह से ज्यादा स्थगित करने के लिए अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) लाकर या फिर विधानसभा सत्र में विधेयक पारित करवाने के इलावा राज्य सरकार के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है।

इसी कड़ी में राज्य सरकार ने कुछ दिन पूर्व ही ऑर्डिनेंस लाकर अगले 6 माह के लिए प्रशासक काल बढ़ाने का निर्णय लिया, लेकिन जैसे ही प्रत्रवाली विधायी विभाग को परामर्श के लिए भेजी गई, वहां इस प्रकरण ने दूसरा ही मोड़ ले लिया।

शासकीय सूत्र बताते हैं कि विधायी विभाग ने परामर्श देते हुए सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्यीय संविधान पीठ के उस आदेश / निर्णय का हवाला दिया कि अगर एक ही स्वभाव / रूप / तरह का ऑर्डिनेंस / अध्यादेश कोई भी सरकार दूसरी बार लाती है तो यह संविधान के साथ ठगी व छलावा होगा। इस परामर्श के साथ प्रत्रवाली मूल विभाग को भेज दी गयी। जिसके उपरांत विचनल का प्रयोग कर अध्यादेश से जुड़ी पत्रावली राजभवन की मुहर हेतु वहां भेज दी गयी।

विधायी विभाग के इस परामर्श ने राजभवन में जहां असमंजस की स्तिथि पैदा कर दी है तो वंही राज्य सरकार के लिए गले की फांस। आपको बता दें कि उत्तराखंड सरकार इसी तरह का ऑर्डिनेंस वर्ष 2022 में हरिद्वार पंचायत चुनाव के लिए पूर्व में ला चुकी है। तब वहां 6 – 6 माह करके दो बार प्रशासक काल बढ़ाया गया था। तब ऑर्डिनेंस आने के कुछ माह बाद जैसे ही विधानसभा सत्र में इस ऑर्डिनेंस को विधेयक के रूप में पेश किया गया तो किन्ही कारणों से तब वह पटल पर पास न हो सका न ही इससे जुड़ा कोई एक्ट बन सका।

इस कारण से अब जब उत्तराखंड सरकार पुनः उसी प्रकार का ऑर्डिनेंस एक बार फिर लाने जा रही है तो विधायी विभाग के परामर्श ने इस कार्य में विघ्न डाल दिया। शासकीय सूत्र यह भी बताते हैं कि राजभवन सोमवार को इस प्रकरण व पत्रावली पर बड़े दिशा-निर्देश दे सकता है

संभावना है कि अगर राजभवन भी विधायी विभाग के परामर्श पर ही अपना मत बनाता है तो राज्य सरकार के लिए इस प्रकरण पर फिर एक ही रास्ता बचता है वो यह है कि आगामी कुछ दिनों के भीतर ही एक दिवसीय विशेष विधानसभा सत्र बुलाकर इस विधेयक को पटल से पारित करवाया जा सकता है व इस नए अधिनियम को लागू करवाकर ही एक बार फिर 6 माह के लिए प्रशासक काल को बढ़ाया जा सकता।

विधानसभा सत्र आहूत न होने की स्तिथि में आगामी चुनाव सम्पन्न होने तक समस्त तरह के पंचायतीराज विभाग से जुड़ी निर्वाचित संस्थाएं भंग हो जाएंगी।