अपनी मांगों को मनवाने के लिए देहरादून में गुरुवार सबह से ही युवा एकत्रित होने शुरू हो गए थे। भीड़ बढ़ती गयी छात्र आक्रोशित होते गए, पत्थरबाज़ी व लाठीचार्ज हुआ और अंत में दोनों खेमों के कई लोग चोटिल हुए।
लेकिन हैरत की बात यह है कि ज़िला प्रशासन देहरादून, प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी हुए गोपनीय पत्र से पूर्व तक इस घटनाक्रम को हल्के में लेता रहा।
बता दें कि उस दिन एक तरफ जब गाँधी पार्क पर युवा एकत्रित होकर प्रदर्शन कर रहे थे उसी दैरान जिलाधिकारी व एसएसपी देहरादून पूर्व तय कार्यक्रम के अनुसार ऋषिकेश एम्स की ओर प्रस्थान करते हैं। जिससे साफ जाहिर हो जाता है कि या तोह अधिनस्त अधिकारियों ने DM – SSP को घटनाक्रम की गंभीरता नही बताई थी या फिर DM-SSP ने कुछ घंटों तक खुद ही घटनाक्रम से दूरी बनाए रखना बेहतर समझा।
PMO ने पत्र जारी कर पूछे यह सवाल
गुरुवार को जब नेशनल मीडिया ने देहरादून की घटना को कवरेज देकर लाइव टेलीकास्ट किया तोह इसे देख PMO प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठे तेज-तर्रार अफसर तुरन्त एक्टिव हो जाते हैं और केंद्रीय खुफिया विभागों से जानकारी एकत्रित करना शुरू कर देते हैं।
विशिष्ट सूत्र बताते हैं कि गुरुवार को करीब 2 बजे उत्तराखंड सचिवालय में एक ऑनलाइन पत्र सीधा प्रधानमंत्री कार्यालय से पंहुचता है जिसमे उक्त घटनाक्रम का जिक्र कर कुछ सवाल व मौजूदा स्थिति पूछी जाती है।
पत्र मार्क होकर जिलाधिकारी देहरादून तक पंहुचता है, पत्र पढ़ने के बाद जिला प्रशासन देहरादून के तमाम अधिकारियों के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। तुरंत बाद जिलाधिकारी देहरादून के कैम्प कार्यलय में एक गोपनीय बैठक बुलाई जाती है, और उस पत्र के बारे में अन्य अधिकारियों को भी सूचना दी जाती है। बैठक में सभी से चर्चा कर जिलाधिकारी अपना जवाब शासन को भेज देती है।
विशिष्ट सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने पत्र के माध्यम से उत्तराखंड शासन से 3 प्रमुख बाते पूछी थी –
- क्या प्रशासन को इतनी बड़ी संख्या में भीड़ जुटने व आंदोलन की जानकारी पहले से थी
- अगर हां तो, जिला प्रशासन व पुलिस द्वारा क्या तैयारियां की गई ?
- आगे यह आंदोलन किस दिशा में जा सकता है ?
अब देखने वाली बात यह होगी कि प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए जवाब में किस विभाग का फैलियर बताया गया है और भेजे गए जवाब के अनुसार किस पर गाज गिरती है ?
बुधवार की रात किसके फोन पर आंदोलनकारियों को जबरदस्ती उठाया गया-
इसी बीच चर्चा यह भी है कि बुधवार रात देहरादून के कप्तान को किसी अहम पद पर बैठे एक व्यक्ति का फोन आता है जिसके तुरंत बाद अचानक फोर्स को गाँधी पार्क पर पंहुचने के लिए बोला जाता है। जल्दबाजी इतनी की जिले में तैनात किसी भी मजिस्ट्रेट को सूचित नही किया गया। लेकिन नियमानुसार ऐसे मौकों पर मजिस्ट्रेट का मौके पर रहना अनिवार्य होता है।
सूत्र बताते हैं कि जिस अहम पद पर बैठे व्यक्ति ने कप्तान देहरादून को फोन किया था वह बेरोजगार संगठन से निजी मतभेद होने के चलते 4-5 दिनों से आहत था। जिसके चलते यह सब किया गया।
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