प्रभागीय वन विभाग देहरादून की लापरवाही का खामियाजा अब देहरादून वासियों को भुगतना पड़ेगा

मानसून सीजन में आपने अक्सर देखा होगा कि भारी वर्षा व बादल फटने से जनपद की सभी नदियों में पानी ओवरफ्लो बहता रहता है। वंही शहर से सटी रिस्पना, बिंदाल, आदि नदियों का ओवरफ्लो पानी कई बार शहर व बस्तियों के घरों में घुस जाता है, जिससे निजी व सरकारी संपत्ति का नुकसान तो होता ही है बल्कि कई बार जान मान का नुकसान भी हो जाता है।

ऐसी स्थिति पैदा ना हो, इस लिए जिला प्रशासन द्वारा एहतियातन के तौर पर हर वर्ष मानसून सीजन से पहले रिवर ड्रेजिंग प्रक्रिया को लागू किया जाता है।

इस प्रक्रिया के तहत नदी के मध्य भाग में एकत्रित उप खनिज का खनन कर, नदी के जल प्रभाव को नदी के मध्य से केंद्रित किया जाता है। ताकि वर्षा काल में नदी में आने वाले बाढ़ के कारण तटों के किनारे बसी आबादी क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान की जा सके।

सुरक्षा दृष्टि से रिवर ड्रेजिंग प्रक्रिया काफी अहम मानी जाती है, लेकिन हैरत की बात यह है कि इस बार देहरादून की किसी भी नदी में रिवर ड्रेजिंग नही हुई है।

जानकारी जुटाने पर पाया गया कि जिला प्रशासन व जिला खान अधिकारी द्वारा मई माह में रिवर ड्रेजिंग की प्रक्रिया शुरू तोह की गई, लेकिन DFO देहरादून नीलेश मणि त्रिपाठी द्वारा फाइल पर हस्ताक्षर न करने के कारण यह प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गयी।

आपको बता दें कि रिवर ड्रेजिंग प्रक्रिया शुरू करने के लिए सभी कमेटी मेंबरों की स्वीकृति लेनी पड़ती है, इस कमेटी में नगर आयुक्त देहरादून, प्रभागीय वन अधिकारी / DFO, सहायक अभियंता सिंचाई विभाग, जिला खान अधिकारी, तहसीलदार सदर देहरादून, उप जिलाधिकारी देहरादून शामिल है।

नाम ना छापने की शर्त पर संबंधित सेक्शन अधिकारी द्वारा बताया गया कि “DFO देहरादून को छोड़कर सभी अधिकारियों ने अपनी स्वीकृति दे दी थी। जब भी वह DFO देहरादून से फाइल पर स्वीकृति कराने जाते थे तोह हर बार न जाने क्यों फ़ाइल को अगले दिन के लिए टाल देते थे। जिस कारण आज 2 महीने बाद भी इस फाइल पर स्वीकृति नहीं मिली है।”

उक्त मामले में हमारे द्वारा डीएफओ देहरादून निलेश मणि त्रिपाठी से बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनके द्वारा फोन नहीं उठाया गया।

अब सवाल यह खड़ा उठता है DFO देहरादून इस अहम फ़ाइल पर क्यों स्वीकृति नही दे रहे थे, क्या इसके पीछे कोई वजह छुपी है या कुछ और बात है।

खैर साहिब को क्या फर्क पड़ता है चाहे नदी से सटे घरों में पानी भरे या प्रदेश को राजस्व का नुकसान हुआ हो।

अब देखना होगा कि क्या मुख्यमंत्री एवं वन मंत्री इस गंभीर विषय का संज्ञान लेते हुए ऐसे अधिकारी पर कार्यवाही करेंगे भी या यह ढर्रा ऐसे ही चलता रहेगा।