सफाई कर्मचारियों की तनख्वाह का पैसा तक ऐंठ गए कई पार्षद, जांच में हुआ खुलासा, अब होगी रिकवरी !!

नगर निगम के वार्डों में सफाई व्यवस्था के लिए गठित की गई नई पार्षद समितियों की सूची में आधे नाम गायब मिले हैं। सत्यापन में यह भी पता चला है कि निगम जिन कर्मियों के खाते में वेतन जारी कर रहा है, निगम के ब्यौरा तलब करते ही मौके पर उनकी जगह अब काम कोई और कर रहा है। प्रशासक और नगर आयुक्त के आदेश पर की जा रही जांच में यह खुलासा हुआ है।

पार्षदों के पास तो समितियां का अधिकार

बोर्ड बंद होने से पहले पार्षदों के पास ही स्वच्छता समितियों का अधिकार था। पार्षदों ने अपने वार्ड में समिति के अध्यक्ष व कोषाध्यक्ष के संयुक्त खाते खुलवाए, जिनमें निगम कर्मचारियों का वेतन भेजता था। सूत्रों की मां ने तो समिति की ओर से कर्मचारियों को मनमाना वेतन नकद दिया जाता था, व बाकी बचा पैसा पार्षदों द्वारा रख लिया जाता था।

निगम के पिछले बोर्ड के कार्यकाल में सफाई व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए करीब एक हजार सफाई कर्मचारियों को पार्षद समिति के जरिए भर्ती किया गया था। प्रत्येक वार्ड में न्यूनतम पांच और अधिकतम सोलह कर्मचारी रखे गए थे।

हर महीने प्रति कर्मचारी 15-15 हजार रुपये का भुगतान वेतन के तौर पर दिया जा है। निगम को निरंतर कई कर्मचारियों के ड्यूटी पर नहीं आने और नियम विरुद्ध नगद और चेक से वेतन भुगतान को लेकर शिकायतें प्राप्त हो रही थी। जिसके आधार पर प्रशासक नगर निगम और नगर आयुक्त गौरव कुमार के निर्देश पर मुख्य नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अविनाश खन्ना ने सफाई इंस्पेक्टरों और सुपरवाइजरों को कर्मचारियों की सूची का भौतिक सत्यापन करने के आदेश जारी किए हैं। उन्होंने बताया कि अब तक 75 वार्डों से ही निगम को कर्मचारियों के नाम पते और खातों की जानकारी मिल पाई है। जांच में यह खुलासा हुआ है कि समितियों की सूची में नवंबर माह तक जो नाम शामिल थे। वह दिसंबर की शुरुआत से बदलने शुरू हो गए हैं। अब मौके पर भी ऐसे कर्मचारी काम करने आने लगे हैं, जिनके सूची में नाम ही नहीं है।

नई पार्षद समितियों के वेतन पर बीते पांच सालों में करोड़ों रुपये का बजट खर्च हो चुका है। इससे पहले भी नियम विरुद्ध वेतन भुगतान और पीएफ व इएसआई की सुविधा नहीं मिलने को लेकर सवाल उठते रहे हैं। बावजूद नगर निगम वित्त अनुभाग बिना जांच पड़ताल किए वेतन का भुगतान करता रहा।