नगर निगम के वार्डों में विधायक निधि से बन चुकी सड़कों के नाम पर निगम का बजट ठिकाने लगाने का मामला सामने आया है। निगम की टीमों द्वारा किए जा रहे सत्यापन में इस बात का खुलासा हुआ है। नगर आयुक्त ने ऐसी फाइलें वापस लौटा दी हैं। साथ ही लोक निर्माण अनुभाग को सख्त हिदायत दी है कि जो विकास कार्य पूर्व में हो चुके हैं। उनसे संबंधित प्रस्ताव टेंडर में शामिल नहीं किए जाएं।
निगम के सौ वार्डों में करीब तीस करोड़ रुपये के बजट से सड़कों, पुश्तों, नालियों आदि का निर्माण होना है। हाल ही में इन प्रस्तावित कार्यों के टेंडर भी हो चुके हैं। लेकिन काम शुरू करवाने से पहले नगर आयुक्त ने लोक निर्माण अनुभाग को प्रत्येक प्रस्तावित कार्य का सत्यापन कर मौके पर जाकर फोटोग्राफी करवाने के निर्देश दिए। फाइलों में काम शुरू करने से पहले और काम पूरा होने के बाद का फोटो उपलब्ध करवाने का नियम लागू किया गया है।
सूत्रों के मुताबिक टीमों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वार्डों में पंद्रह से सोलह सड़कें ऐसी हैं जिनका निर्माण विधायक निधि से हो चुका है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि जब लाखों रुपये का बजट खर्च कर ये कार्य पहले ही हो चुके हैं तो फिर इन कार्यों के प्रस्ताव फिर से टेंडर में शामिल क्यों किए गए। यदि जांच नहीं होती तो आनन फानन में नगर निगम का बजट खप जाता। वहीं ठेकेदारों को टेंडर से पहले एडवांस में निर्माण कार्य नहीं करने को लेकर सख्त हिदायत दी गई है। जो निर्देशों का पालन नहीं करेगा उसके भुगतान पर रोक लगाई जाएगी।
वंही यह घपला पकड़ में आने के बाद अब यह सवाल खड़ा होता है कि कौन है यह शख्स जो भाजपा सरकार की साफ छवि पर दाग लगाने का षड्यंत्र कर रहा है ?
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