CM धामी का बड़ा निर्णय, फर्जी बन रहे स्थाई निवास प्रमाण पत्रों की होगी हाई लेवल जांच, बनाने वाले SDM व तहसीलदार की जिम्मेदारी होगी तय !!

हाल के कुछ सालों में यह देखने को मिला है कि उत्तराखंड में बाहर से आये लोगों के भी नियमविरुद्ध स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनाये जा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल कर कईयों को विभिन्न विभगों में सरकारी नौकरी भी मिल गयी है।

हाल ही में ऐसा एक घटनाक्रम स्वास्थ्य विभाग की नर्सिंग भर्ती में भी सामने आया है, जहां 8 अन्य प्रदेश के अभ्यर्थियों द्वारा गलत तरीके से स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनवाकर नर्सिंग भर्ती में आवेदन किया गया, लेकिन विभन्न संघठनो द्वारा की गई इन 8 अभ्यर्थियों की शिकायत का मामला प्रकाश में आ गया व इनके सभी दस्तावेजों का पुनः परिशिक्षण करवाने के दौरान सभी के स्थाई निवास प्रमाण पत्र गलत तरीके से बने हुए पाए गए।

जिस क्रम में अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बड़ा निर्णय लेते हुए इन 8 स्थाई निवास प्रमाण पत्रों की उच्चस्तरीय जांच करवाने के निर्देश सचिव मुख्यमंत्री शैलेश बगोली को दिए हैं व भविष्य में ऐसी गलतियों न हो इसके लिए भी सख्त निर्देश दिए हैं। शासकीय जानकर बताते हैं कि इन 8 से इतर भी कुछ स्थाई प्रमाण पत्रों की शिकायत शासन को प्राप्त हुई है, जिनकी जांच करने व गलत पाए जाने की दिशा में के SDM, तहसीलदार व पटवारी की भी जिम्मेदारी तय करने के स्पष्ट आदेश मुख्यमंत्री धामी ने आज दिए हैं।

SDM डोईवाला के कार्यालय से बने सभी प्रमाण पत्र

शासकीय सूत्र बताते हैं कि नर्सिंग भर्ती में इस्तेमाल हुए उक्त सभी 8 स्थाई निवास प्रमाण पत्रों को 1 से 2 वर्ष पूर्व, SDM डोईवाला द्वारा जारी किए गए थे। शासन ने इन सभी 8 स्थाई निवास प्रमाण पत्र की जांच जिलाधिकारी देहरादून से करवाने का निर्णय भी लिया है।

स्थाई निवास को 15 साल रहना अनिवार्य

उत्तर प्रदेश पुनर्गठन ऐक्ट के तहत 20 नवंबर 2001 में दिए गए प्रावधानों के तहत उत्तराखंड में स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनाया जा सकता है। इसके लिए राज्य में लगातार 15 साल का निवास दिखाना अनिवार्य है। इसके तहत भूमि की रजिस्ट्री जिसमें 15 साल निवास की पुष्टि होती है। आधार कार्ड, शिक्षा संबंधी प्रमाण पत्र, बिजली पानी का बिल, बैंक पासबुक, नगर निगम हाउस टैक्स की प्रति, गैस कनेक्शन, वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड की प्रति दिखाना इसके लिए अनिवार्य है।