“कोई काम बड़ा व छोटा नहीं होता, बस करने वाला होना चाहिए” अगर इस कथन का असल मतलब किसी ने समझा है तो वह है उत्तराखंड कैडर के आईएएस अधिकारी हरिचंद सेमवाल जो इस वक्त उत्तराखंड शासन में सचिव पंचायतीराज सहित अन्य जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं।
प्रकरण एक हो तो आप उसे त्रुटि या गलती मान सकते हैं लेकिन प्रकरण इतने हो कि रिकॉर्ड बन जाए तो क्या ही कहने।
प्रकरण 1 – बिना मंत्री व मुख्यमंत्री के अनुमोदन के कर डाला Class 1 अफसर ससपेंड और आदेश में छाप डाला “राज्यपाल की आज्ञा से” –
उक्त प्रकरण पंचायती राज विभाग का है जहाँ कुछ दिन पूर्व, सचिव हरिचन्द सेमवाल ने संयुक्त निदेशक राजीव नाथ त्रिपाठी को ससपेंड कर दिया, उनके सस्पेंशन के आदेश में ऐसे ऐसे आरोप का जिक्र कर दिया गया, जिसकी शिकायत शासन तो छोड़िए निदेशालय तक को नही है। सस्पेंड करने से पूर्व न ही नोटिस दिया गया न जवाब मांगा गया, न विभागीय मंत्री से अनुमोदन करवाया व ना ही मुख्यमंत्री से, बस ठाना और ससपेंड कर दिया। जबकि कार्य नियमावली 1975, उत्तरप्रदेश के अनुसार श्रेणी 2 से उच्चतर किसी राजपत्रित अधिकारी को पदच्युत करने, निलंबित करने व अनिवार्य सेवानिवृत्त करने के प्रस्ताव को मुख्यमंत्री द्वारा अनुमोदित / सहमति देंना अनिवार्य है। वंही हैरत की बात यह भी है कि इसी अधिकारी के निलंबन आदेश में “श्री राज्यपाल की आज्ञा से” पंक्ति भी छाप दी गयी जबकि नियमानुसार ऐसा सिर्फ मुख्यमंत्री व मंत्री से अनुमोदन के बाद ही छापी जा सकती है।
प्रकरण 2 – बिना कमिटी घटित किये व मुख्यमंत्री /मंत्री के अनुमोदन के बगैर 1 लाख की रिश्वत लेते गिरफ्तार हुए अधिकारी को कर दिया अपने स्तर से बहाल –
उक्त प्रकरण पंचायती राज विभाग का है, जहां कुछ दिन पूर्व 1 लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार हुए जिला पंचायती राज अधिकारी रमेश चंद्र त्रिपाठी को विभागीय सचिव हरि चंद सेमवाल ने हाल ही में बिना कमिटी घटित किए व बगैर मंत्री व मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बहाल कर दिया।
प्रकरण 3 – जिला कैडर कर्मचारियों को कर दिया जनपद के बाहर तैनात, अब निदेशक ने रोके शासन द्वारा किये गए तबादले –
पंचायती राज विभाग में सचिव हरि चंद सेमवाल द्वारा अचार संहिता लगने से ठीक एक दिन पूर्व 19 ग्राम पंचायत विकास अधिकारी / VPDO के तबादले जनपद कैडर से बाहर कर दिए गए। मामला प्रकाश में आते ही मौजूदा निदेशक पंचायती राज निधी यादव ने सभी 19 VPDO अधिकारियों को मुख्यालय से अटैच कर दिया है। उन्होंने शासन को पत्र लिख इन तबादलों को नियमानुसार ठीक करवाने के लिए लिखा है। उन्होंने यह भी लिखा है कि अंतर्जनपदीय तबादले होने के कारण भविष्य में निश्चित ही सीधी भर्ती व पदोन्नति कोटे / रोस्टर में भी विसंगति देखने को मिलेगी।
प्रकरण 4 – एक साल बाद रिक्त हो रही कुर्सियों पर समय से पहले ही कर दी अभियंताओं की तैनाती, मामला प्रकाश में आया तो निरस्त किये अपने ही सभी आदेश –
सिनेमाघरों व बसों की सीट पर रुमाल रख कर सीट रिजर्व करना तो आपने सूना ही होगा लेकिन ऐसा प्रकरण सचिव साहब के करिश्मे के कारण शासन के आदेश में भी देखना को मिला है। उक्त आदेश तत्कालीन सचिव सिचाई हरि चंद सेमवाल द्वारा कुछ माह पूर्व किया गया था। जिसमे उन्होंने 1 साल बाद रिटायरमेंट के कारण रिक्त हो रही 3 से 4 पोस्टों पर 1 साल पहले ही तैनाती कर दी थी। जब मामला प्रकाश में आया तो तत्कालीन सचिव सिचाई को ही उक्त सभी आदेश स्वयं ही निरस्त करने पड़े थे।
प्रकरण 5 – मृतक आश्रित को दी ऐसी तैनाती कि ग्रेजुएशन करते ही आश्रित हो जाएगा 2 पोस्ट ऊपर पदोन्नत –
उक्त प्रकरण पंचायती राज विभाग का है जहां एक मृतक आश्रित के लिए सचिव साहब द्वारा अद्भुत आदेश जारी कर दिया गया। आश्रित को सबसे पहले कनिष्ट सहायक पद पर तैनाती दे दी गयी व नियुक्ति आदेश में यह तक लिख दिया गया जब आश्रित द्वारा ग्रैजुएशन कर लिया जाएगा उक्त को स्वयं से ही 2 पद ऊपर सहायक लेखाकार पद पर पदोन्नत माना जाएगा।
प्रकरण 6 – एक मृतक कर्मचारी के जगह दे दी 2 आश्रितों को नियुक्ति –
उक्त प्रकरण सिचाई विभाग से जुड़ा है जहां तत्कालीन सचिव साहब ने एक और अनोखा आदेश छाप कर एक मृतक कर्मचारी के जगह उनके 2 आश्रितों को सिचाई विभाग में नियुक्ति दे दी। ऐसा प्रकरण शायद ही आपने प्रदेश क्या देश के इतिहास में पहली बार देखा व सुना होगा।
उक्त सभी प्रकरण वह हैं जो प्रकाश में आए हैं न जाने ऐसे कितने प्रकरण होंगे जो शासन की फाइलों में न जाने कबसे दबे पड़े होंगे।
Editor