दून में डेंगू का खतरा बढ़ता जा रहा है। मंगलवार को जिले में इस सीजन के सबसे ज्यादा 58 मरीज मिले हैं। जिले में अब कुल मरीजों की संख्या 388 हो गई है। इस वक्त जिले में करीब 30 मरीज अस्पतालों में भर्ती हैं।
डेंगू के रोकथाम हेतु बैठकें तो रोज देहरादून में हो रही है लेकिन धरातल पर क्या अमल में लाया जा रहा है इससे सभी देहरादून वासी वाकिफ हैं
बता दें कि जनपद में हो रही बैठकों में कागजी रिपोर्टों के आधार पर कोई न कोई अधिकारी अपनी पीठ थपथपाते आपको मिल जाएगा, लेकिन जमीनी स्थिति कागजी रिपोर्टों से काफी उलट है।
जिला मलेरिया नियंत्रण अधिकारी सुभाष जोशी ने बताया कि दून में 20 महिला एवं 38 पुरुषों में डेंगू की पुष्टि हुई है। सभी मरीजों की लगातार मॉनीटरिंग की जा रही है। जहां मरीज मिल रहे हैं, वहां पर निरोधात्मक कार्रवाई की जा रही है। आशाओं एवं सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है। अस्पतालों में भी समन्वय बनाया गया है।
उधर, नगर आयुक्त मनुज गोयल के निर्देश पर मंगलवार को नगर निगम के विभिन्न वार्डों में फॉगिंग अभियान चलाया गया। मुख्य नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ अविनाश खन्ना ने बताया कि डेंगू के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
मच्छरों पर असरदार नही है फोगिंग, देश के कई हिस्सों में अब इस्तेमाल होता है यह तरीका –
मच्छरों के सफाए के लिए की जाने वाली धुएं की फॉगिंग मच्छरों पर बेअसर है, साथ ही इससे बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए दिल्ली नगर निगम सहित देश के कई हिस्सों में धुएं की फॉगिंग के बजाय कोल्ड फॉगिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह तकनीक एक स्प्रे की तरह होती है। इसमें पानी में कीटनाशक मिलाकर स्प्रे किया जाता है। कोल्ड फॉगिंग मशीनों का इस्तेमाल साउथ दिल्ली एमसीडी एरिया में किया जा रहा है।
दिल्ली एमसीडी अफसरों के अनुसार डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के मच्छरों को मारने के लिए दिल्ली में दशकों से फॉगिंग की जा रही है। लेकिन, व्यस्क मच्छरों पर धुएं की फॉगिंग बेअसर है। साथ ही ये सेहत के लिए भी हानिकारक है। इसलिए फॉगिंग उसी एरिया में की जाती है, जहां मच्छरों का प्रकोप काफी अधिक हो और डेंगू और मलेरिया के केस अधिक आए हों।
एक घंटे में एक फॉगिंग मशीन में करीब 4 लीटर डीजल का इस्तेमाल होता है। डीजल में साइफेनोथेरीन कीटनाशक मिला कर फॉगिंग की जाती है। अगर लगातार 5 घंटे तक फॉगिंग की जाए, तो 20 लीटर से भी अधिक डीजल फॉगिंग में इस्तेमाल होता है, जिसकी लागत काफी अधिक है।
दिल्ली एमसीडी अफसरों का कहना है कि एक तो धुएं वाली फॉगिंग का प्रोसेस खर्चीला है और दूसरा इससे लोगों की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है। इसलिए एमसीडी ने धुएं वाली फॉगिंग के बजाय कोल्ड फॉगिंग करने का प्लान बनाया है। कोल्ड फॉगिंग में डीजल की जगह पानी का इस्तेमाल किया जाएगा।
दिल्ली एमसीडी अफसरों का कहना है कि धुएं वाली फॉगिंग के बजाय कोल्ड फॉगिंग ज्यादा असरदार होती है। कोल्ड फॉगिंग पानी के स्प्रे की तरह होती है और लंबी दूरी तक इससे स्प्रे किया जा सकता है। धुएं वाली फॉगिंग मशीनों से बंद नालों में फॉगिंग नहीं हो पाती, लेकिन इससे बंद ड्रेन में भी स्प्रे किया जा सकता है।
बता दें कि कोल्ड फॉगिंग मशीनें दो तरह की होती हैं, एक हैंड ऑपरेटिड और दूसरी वीकल माउंटिड जेट मशीनें। वीकल माउंटिड जेट कोल्ड फॉगिंग मशीनों की कीमत 12-15 लाख और हैंड हेल्ड मशीनों की कीमत करीब 80-90 हजार रुपये है।
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