सचिवालय में ट्रांसफर पॉलिसी की आहट, कई मठाधीशों की कुर्सी हिलाने की तैयारी !!

उत्तराखंड सचिवालय में नवीन ट्रांसफर पॉलिसी बनने व लागू होने की कवायद शुरू हो गयी है। वर्तमान सचिवालय संघ की मांग पर मुख्यसचिव ने सचिवालय ट्रांसफर पॉलिसी में संशोधन करने के आदेश दिए हैं। जिस क्रम में 22 जुलाई को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक भी आहूत हो चुकी है।

आपको बता दें कि उत्तराखंड सचिवालय में कई ऐसे मलाईदार व पावरफुल सेक्शन हैं जहां जाने व विराजमान होने के लिए कई लोग टॉप लेवल तक से सिफारिश लगा देते हैं। कुछ तो ऐसे हैं कि 5-5 साल के बाद भी उन अनुभागों से हटने तक का नाम तक नही लेते हैं। कोई खुद को दीदी का खास बताता है तो कोई ताऊजी का, जिस कारण से सचिवालय में आज तक वर्ष 2007 की ट्रांसफर नीति लागू नहीं हो पाई।

सचिवालय में सबसे ज्यादा समस्या अनुभाग अधिकारी, निजी सचिव और समीक्षा अधिकारी के पदों पर है। विभागों के प्रमुख सचिव या सचिव स्तर पर अनुभाग अधिकारियों के साथ ही निजी सचिव पद पर विशेष पसंद देखी जाती रही है। प्रमुख सचिव या सचिव जिस विभाग में जिम्मेदारी लेते हैं, उनका निजी सचिव वही बना रहता है। इसके अलावा अनुभाग अधिकारी को लेकर भी उच्चस्थ अधिकारियों की इच्छा के आधार पर तैनाती कर दी जाती है। वहीं अनुभाग अधिकारी अपने कंफर्टेबल के लिहाज से समीक्षा अधिकारी की इच्छा रखता है। इस तरह इन पदों पर पारदर्शी तबादला नीति के तहत व्यवस्था बन ही नहीं पाती।

नए ट्रांसफर नीति में यह प्रावधान

शासकीय जानकारों की माने तो SAD सामान्य प्रशासन विभाग ट्रांसफर नीति में संशोधन के दौरान, समस्त अनुभागों को 3 पूल (श्रेणी) में बांटने की तैयारी कर रहा है। श्रेणी एक मे मलाईदार विभगों के अनुभाग 1 (अधिष्ठान) को रखा गया है, तो श्रेणी 2 में मलाईदार विभगों के अन्य अनुभागों को रखा गया है वंही श्रेणी 3 में सामान्य अनुभागों को रखा गया है। श्रेणी एक में 3 वर्ष का समय पूरा करने वाले SO, RO व ARO को श्रेणी 3 के अनुभागों में भेजा जाएगा जिसके बाद वहां वह 3 वर्ष का समय पूरा करने के उपरांत श्रेणी 2 में तैनात किए जाएंगे। वहां फिर 3 वर्ष के बाद उन्हें श्रेणी 1 के अनुभागों के तैनात किया जाएगा। शासकीय जानकर यह भी बतातें हैं कि एक ही समय पर SO व RO के तबादले की स्थिति में जिसको उस श्रेणी मे कम समय हुआ है उसका कुछ माह के लिए रोका जाएगा।

कुर्सी छुड़वाने के लिए आपस मे कर देतें हैं फर्जी शिकायत –

हाल ही में कई प्रकरण ऐसे सामने आए हैं, जहां अहम कुर्सियों में बैठे SO से लेकर अपर सचिव को हटाने के लिए उनके ही प्रतिद्वंद्वी बिना नाम के ही शिकायती पत्रों का इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ शिकायत में तो शिकायतकर्ता का नाम व पता तक गलत दर्शाया गया है। खैर इक्का-दुक्का शिकायत कभी कभार सही भी पाई जाती है