उत्तराखंड में हर सप्ताह आपको बाघों की खाल, वन्यजीवों की तस्करी से लेकर अवैध तरीके से काटे जा रहे पेड़ों की खबर रोज सुनने को मिल जाती होगी, लेकिन इन तस्करों को रोकने के उद्देश्य से बनाई गई स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप/ फारेस्ट इंटेलिजेंस यूनिट कहाँ सोई पड़ी है इसकी खबर खुद वन विभाग को नही है।
हाल ही में एकाएक हुई कई घटनाओं ने मानो वन विभाग की किरकिरी करा रखी है। मामला चाहे वन्यजीव तस्करी का हो या फिर अवैध पेड़ कटान का, हर मामले में पिछड़ती जा रही है वन विभाग की SOG ।
आप अपने घर मे छोटा सा भी पेड़ या उसकी टहनी तक भी काट देंगे तो वन विभाग के कर्मचारी ना जाने अचानक कहां से प्रकट होकर आपसे जुर्माने का चालान वसूलने आपके घर पहुंच जाएंगे, वंही जब कोई विभाग के स्वयं के जंगलों से कई सौ पेड़ काटकर लकड़ी / स्लीपर की तस्करी कर दें तब न जाने यह वन कर्मी व वन विभाग की SOG कहां गायब रहती है इसका आज तक पता न चल सखा है।
बता दें कि पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रामशरण नौटियाल की लिखित शिकायत पर चकराता के कनासर और पुरोला के टोंस वन प्रभाग में देवदार और कैल जैसी दुर्लभ प्रजाति के पेड़ों के अवैध कटान के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। वन विभाग की प्राथमिक जांच में यह बात सामने आई कि वन तस्करों ने बड़े पैमाने पर अवैध रूप से काटी गई लकड़ी को पड़ोसी राज्य हिमाचल और उत्तर प्रदेश में ठिकाने लगाया है। विभाग ने कुछ तस्करों को चिह्नित कर लिया गया है। शीघ्र ही धरपकड़ हो सकती है। कुछ बड़े अधिकारियों पर भी गाज गिरना तय है।
देहरादून जिले के कनासर रेंज में अब तक 3500 से अधिक स्लीपर की बरामदगी हो चुकी है। इसके अलावा 650 बारीक चिरान (लकड़ी के बड़े फट्टे) भी मिले हैं। विभाग ने तीन मिनी आरा मशीनों को सील किया है, जबकि 21 एच-टू केस काटे गए हैं। इसके अलावा, क्षेत्र के उन बड़े तस्करों को चिह्नित कर लिया गया है, जिन्होंने माल को दूसरे राज्यों में पहुंचाने का काम किया। विभाग की ओर से दोनों राज्यों के वन अधिकारियों को पूरे मामले से सूचित करने के अलावा, वहां जांच के लिए टीमें भेजने की तैयारी है। हालांकि, मामला संवेदनशील होने के चलते विभाग के अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं।
विभागीय सूत्रों की मानें तो जिस क्षेत्र में संरक्षित प्रजाति के पेड़ काटे गए हैं, वहां एक कच्ची सड़क पर भूस्खलन होने से कई दिनों से मार्ग बंद है। यदि सड़क बंद नहीं हुई होती तो अब तक काफी हद तक स्लीपर को दूसरे राज्यों में ठिकाने लगा दिया जाता। अब तक जो माल पकड़ा गया है, संभवत: वन विभाग के हाथ वह भी नहीं लगता। तीन दिन पहले ही यमुना पुल के पास पुलिस और वन विभाग की संयुक्त टीम ने करीब 50-60 कैल के स्लीपर से भरी एक गाड़ी पकड़ी थी। बताया जा रहा है कि वाहन में लदी लकड़ी को हिमाचल भेजा जा रहा था।
उत्तरकाशी के पुरोला और टोंस वन प्रभाग में छपान के नाम पर काटे गए हरे पेड़ों के मामले में वन विभाग के बड़े अधिकारियों पर गाज गिरना तय है। इस समय में वन मुख्यालय की ओर से दो दौर की जांच पूरी कराई जा चुकी है। विभाग के सूत्रों की मानें तो इसमें कुछ छोटे कर्मियों के अलावा बड़े अधिकारियों की भी मिलीभगत की बात सामने आ रही है। वन मंत्री सुबोध उनियाल ने भी इसके संकेत दिए हैं। उन्होंने बताया कि मामले में लिप्त अफसरों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। शीघ्र ही इस मामले में बड़ी कार्रवाई की जाएगी।
उत्तरकाशी जिले के पुरोला, टोंस वन प्रभाग और देहरादून जिले के चकराता वन प्रभाग के कनासार रेंज में काटे गए संरक्षित प्रजाति के देवदार व कैल के हरे पेड़ों का मामला केंद्र तक पहुंच गया है। इस मामले में पर्यावरणविद व रक्षासूत्र आंदोलन के प्रणेता सुरेश भाई ने देश के वन महानिदेशक व केंद्र सरकार में विशेष सचिव सीपी गोयल को पत्र लिखकर पूरे प्रकरण से अवगत कराया है।
पर्यावरणविद ने अपने पत्र में कहा है कि टोंस नदी के जल ग्रहण क्षेत्र में दुर्लभ प्रजाति के पेड़ों का अवैध कटान लंबे समय से चल रहा है। इन वन प्रभागों में वन विभाग की ओर से सैकड़ों सूखे पेड़ों के वाणिज्यिक दोहन के लिए पेड़ों पर छपान किया गया है। लेकिन, चिंता की बात है कि वन निगम और उससे जुड़े हुए ठेकेदार हरे पेड़ों को काट रहे हैं। उन्होंने साक्ष्य के रूप में कुछ छायाचित्र भी प्रेषित किए हैं। पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच के साथ ही दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने की मांग की है।
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